Wednesday, August 15, 2012

जन गण मन की कहानी...

सन 1911 तक भारत की राजधानी बंगाल हुआ करता था। सन 1905में जब बंगालविभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल केलोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपने आपको बचाने के लिए के कलकत्ता सेहटाकर राजधानी को दिल्ली ले गए और 1911 में दिल्ली को राजधानी घोषित करदिया। पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे हुए थे तो अंग्रेजो नेअपनेइंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जाये।इंग्लैंड का राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत में आया। रविंद्रनाथ टैगोर परदबाव बनाया गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज पंचम के स्वागत में लिखना हीहोगा।


उस समय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनकेपरिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे, उनकेबड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ताडिविजन के निदेशक (Director) रहे। उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडियाकंपनी में लगा हुआ था। और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत सहानुभूति थीअंग्रेजों के लिए। रविंद्रनाथ टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखाउसके बोल है "जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता"। इस गीत के सारेके सारे शब्दों में अंग्रेजी राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थसमझने पर पता लगेगा कि ये तो हकीक़त में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखागया था।


इस राष्ट्रगान का अर्थ कुछ इस तरह से होता है "भारत के नागरिक, भारत कीजनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है। हेअधिनायक (Superhero) तुम्ही भारत के भाग्य विधाता हो। तुम्हारी जय हो !जय हो ! जय हो ! तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात,मराठा मतलब महारास्त्र, द्रविड़ मतलब दक्षिण भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा,बंगाल आदि और जितनी भी नदिया जैसे यमुना और गंगा ये सभी हर्षित है, खुशहै, प्रसन्न है ,तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते है और तुम्हारे नाम काआशीर्वाद चाहते है। तुम्हारी ही हम गाथा गाते है। हे भारत के भाग्यविधाता (सुपर हीरो ) तुम्हारी जय हो जय हो जय हो। "


जोर्ज पंचम भारत आया 1911 में और उसके स्वागत में ये गीत गाया गया। जब वोइंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया।क्योंकि जब भारत में उसका इस गीत से स्वागत हुआ था तब उसके समझ में नहींआया था कि ये गीत क्यों गाया गया और इसका अर्थ क्या है। जब अंग्रेजीअनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आजतक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की। वह बहुत खुश हुआ। उसने आदेश दियाकि जिसने भी ये गीत उसके (जोर्ज पंचम के) लिए लिखा है उसे इंग्लैंडबुलाया जाये। रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए। जोर्ज पंचम उस समय नोबलपुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था।


उसने रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसलाकिया। तो रविन्द्र नाथ टैगोर ने इस नोबल पुरस्कार को लेने से मना करदिया। क्यों कि गाँधी जी ने बहुत बुरी तरह से रविन्द्रनाथ टेगोर को उनकेइस गीत के लिए खूब डांटा था। टैगोर ने कहा की आप मुझे नोबल पुरस्कार देनाही चाहते हैं तो मैंने एक गीतांजलि नामक रचना लिखी है उस पर मुझे दे दोलेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझे जोनोबेल पुरस्कार दिया गया है वो गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है।जोर्ज पंचममान गया और रविन्द्र नाथ टैगोर को सन 1913 में गीतांजलि नामकरचना के ऊपर नोबल पुरस्कार दिया गया।


रविन्द्र नाथ टैगोर की ये सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में जब जलिया वालाकांड हुआ और गाँधी जी ने लगभग गाली की भाषा में उनको पत्र लिखा और कहाक़ि अभी भी तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरेगा तो कबउतरेगा, तुम अंग्रेजों के इतने चाटुकार कैसे हो गए, तुमइनके इतने समर्थककैसे हो गए ? फिर गाँधी जी स्वयं रविन्द्र नाथ टैगोर से मिलने गए और बहुतजोर से डाटा कि अभी तक तुम अंग्रेजो की अंध भक्ति में डूबे हुए हो ? तबजाकर रविंद्रनाथ टैगोर की नीद खुली। इस काण्ड का टैगोर ने विरोध किया औरनोबल पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत को लौटा दिया। सन 1919 से पहले जितना कुछभी रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो अंग्रेजी सरकार के पक्ष में था और1919के बाद उनके लेख कुछ कुछ अंग्रेजो के खिलाफ होने लगे थे।


रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे औरICSऑफिसर थे। अपने बहनोई को उन्होंने एक पत्र लिखा था (ये 1919 के बाद कीघटना है) । इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत 'जन गण मन'अंग्रेजो केद्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है। इसकेशब्दों का अर्थ अच्छानहीं है। इस गीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है। लेकिन अंत में उन्होंनेलिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आपतक सीमित रखना चाहता हूँ लेकिन जब कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बतादे। 7 अगस्त 1941 को रबिन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र कोसुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने ये पत्र सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहाक़ि ये जन गन मन गीत न गाया जाये।


1941 तक कांग्रेस पार्टी थोड़ी उभर चुकी थी। लेकिन वह दो खेमो में बट गई।जिसमे एक खेमे के समर्थक बाल गंगाधर तिलक थे और दुसरे खेमे में मोती लालनेहरु थे। मतभेद था सरकार बनाने को लेकर।मोती लाल नेहरु चाहते थे किस्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजो के साथ कोई संयोजक सरकार (CoalitionGovernment) बने। जबकि गंगाधर तिलक कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकरसरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है। इस मतभेद के कारणलोकमान्य तिलक कांग्रेस से निकल गए और उन्होंने गरम दल बनाया। कोंग्रेसके दो हिस्से हो गए। एक नरम दल और एक गरम दल।


गरम दल के नेता थे लोकमान्य तिलक जैसे क्रन्तिकारी। वे हर जगह वन्देमातरम गाया करते थे। और नरम दल के नेता थे मोती लाल नेहरु (यहाँ मैंस्पष्ट कर दूँ कि गांधीजी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता सेइस्तीफा दे चुके थे, वो किसी तरफ नहीं थे, लेकिन गाँधी जी दोनों पक्ष केलिए आदरणीय थे क्योंकि गाँधी जी देश के लोगों के आदरणीय थे)। लेकिन नरमदल वाले ज्यादातर अंग्रेजो के साथ रहते थे। उनके साथ रहना, उनको सुनना,उनकी बैठकों में शामिल होना। हर समय अंग्रेजो से समझौते में रहते थे।वन्देमातरम से अंग्रेजो को बहुत चिढ होती थी। नरम दल वाले गरम दल कोचिढाने के लिए 1911 में लिखा गया गीत "जन गण मन" गाया करते थे और गरम दलवाले "वन्दे मातरम"।


नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को ये गीत पसंद नहीं थातो अंग्रेजों के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी किमुसलमानों को वन्दे मातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती(मूर्ति पूजा) है। और आप जानते है कि मुसलमान मूर्ति पूजा के कट्टरविरोधी है। उस समय मुस्लिम लीग भी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अलीजिन्ना थे। उन्होंने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया क्योंकि जिन्ना भीदेखने भर को (उस समय तक) भारतीय थे मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थेउन्होंने भीअंग्रेजों के इशारे पर ये कहना शुरू किया और मुसलमानों कोवन्दे मातरम गाने से मना कर दिया। जब भारत सन 1947 में स्वतंत्र हो गयातो जवाहर लाल नेहरु ने इसमें राजनीति कर डाली। संविधान सभा की बहस चली।संविधान सभा के 319 में से 318 सांसद ऐसे थेजिन्होंने बंकिम बाबु द्वारालिखित वन्देमातरम को राष्ट्र गान स्वीकार करने पर सहमति जताई।


बस एक सांसद ने इस प्रस्ताव को नहीं माना। और उस एक सांसद का नाम थापंडित जवाहर लाल नेहरु। उनका तर्क था कि वन्दे मातरम गीत से मुसलमानों केदिल को चोट पहुचती है इसलिए इसे नहीं गाना चाहिए (दरअसल इस गीत सेमुसलमानों को नहीं अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचती थी)। अब इस झगडे काफैसला कौन करे, तो वे पहुचे गाँधी जी के पास। गाँधी जी ने कहा कि जन गनमन के पक्ष में तो मैं भी नहीं हूँ और तुम (नेहरु ) वन्देमातरम के पक्षमें नहीं हो तो कोई तीसरा गीत तैयार किया जाये। तो महात्मा गाँधी नेतीसरा विकल्प झंडा गान के रूप में दिया "विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडाऊँचा रहे हमारा"। लेकिन नेहरु जी उस पर भी तैयार नहीं हुए।


नेहरु जी का तर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकता और जन गनमन ओर्केस्ट्रा पर बज सकता है। उस समय बात नहीं बनी तो नेहरु जी ने इसमुद्दे को गाँधी जी की मृत्यु तक टाले रखा और उनकी मृत्यु के बाद नेहरुजी ने जन गण मन को राष्ट्र गान घोषित कर दिया और जबरदस्ती भारतीयों परइसे थोप दिया गया जबकि इसके जो बोल है उनका अर्थ कुछ और ही कहानीप्रस्तुत करते है, और दूसरा पक्ष नाराज न हो इसलिए वन्दे मातरम कोराष्ट्रगीत बना दिया गया लेकिन कभी गाया नहीं गया। नेहरु जी कोई ऐसा कामनहीं करना चाहते थे जिससे कि अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचे, मुसलमानोंके वो इतने हिमायती कैसे हो सकते थे जिस आदमी ने पाकिस्तान बनवा दिया जबकि इस देश के मुसलमान पाकिस्तान नहीं चाहते थे, जन गण मन को इस लिए तरजीहदी गयी क्योंकि वो अंग्रेजों की भक्ति में गाया गया गीत था और वन्देमातरमइसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था।


बीबीसी ने एक सर्वे किया था। उसने पूरे संसार में जितने भी भारत के लोगरहते थे, उनसे पुछा कि आपको दोनों में से कौन सा गीत ज्यादा पसंद है तो99 % लोगों ने कहा वन्देमातरम। बीबीसी के इस सर्वे से एक बात और साफ़ हुईकि दुनिया के सबसे लोकप्रिय गीतों में दुसरे नंबर पर वन्देमातरम है। कईदेश है जिनके लोगों को इसके बोल समझ में नहीं आते है लेकिन वो कहते है किइसमें जो लय है उससे एक जज्बा पैदा होता है।
तो ये इतिहास है वन्दे मातरम का और जन गण मन का। अब ये आप को तय करना हैकि आपको क्या गाना है ?
इतने लम्बे पत्र को आपने धैर्यपूर्वक पढ़ा इसके लिए आपका धन्यवाद्। औरअच्छा लगा हो तो इसे फॉरवर्ड कीजिये, आप अगर और भारतीय भाषाएँ जानते होंतो इसे उस भाषा में अनुवादित कीजिये ।


जय हिंद |


यदि आप लोग अभी भी भ्रमित हैं तो मैं बताना चाहूँगा, और वह भी पूरीगारंटी के साथ, कि जी हाँ, जन गण मन का अधिनायक जार्ज पंचम ही है। बहुतसे लोगों को तो शायद यह भी ज्ञात नहीं है कि जिस राष्ट्रगीत याराष्ट्रगान को हम बचपन से ही गाते चले आ रहे हैं वह किस भाषा में है औरउसका अर्थ क्या है? भारत के 100% लोग इसे गाते हैं किन्तु विडम्बना यह हैकि इसे गाने वाले तथा गवाने वाले में से मुश्किल से 5% लोग भी शायद हीजानते हैं कि यह किस भाषा में है और इसका अर्थ क्या है?

जन गण मन अधिनायक जय हे,
(हे जनता के तानाशाह,)
भारत-भाग्य-विधाता।
(आप भारत देश के भाग्य को रचने वाले विधाता हैं।)
पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा,
(उस भारत के जिसके पंजाब, सिंध, गुजरात, महाराष्ट्र,)
द्वाविड़, उत्कल, बंग।
(द्रविड़ - मद्रास -, उड़ीसा, और बंगाल जैसे प्रदेश हैं।)
विन्ध्य, हिमाचल, यमुना-गंगा,
(जिसके विन्ध्य तथा हिमालय जैसे पर्वत और यमुना-गंगा जैसी नदियाँ)
उच्छल जलधि तरंगा।
(जिनकी तरंगे उच्छृंकल होकर बहती हैं।)
तव शुभ नामे जागे,
(भोर में जागते ही आपका नाम लेते हैं,)
तव शुभ आशिष माँगे।
(और इस प्रकार आपका प्रातःस्मरण करके आपके आशीर्वाद की कामना करते हैं।)
जन-गण-मंगलदायक जय हे,
(हे जनता के मंगल करने वाले, आपकी जय हो,)
गाहे तव जयगाथा,
(वे सब आपका ही जयगान करते हैं,)
जन-गण-मंगलदायक जय हे,
(हे प्रजा के मंगलकारी महोदय,)
भारत भाग्य विधाता।
(आप ही भारत के भाग्य के विधाता हैं।)
जय हे, जय हे, जय हे,
(आपकी जय हो, जय हो, जय हो,)
जय, जय, जय, जय हे।
(जय, जय, जय, जय हो, अर्थात् सदा-सर्वदा जय होती रहे)

वन्दे मातरम्। - संस्कृत मूल गीत

वन्दे मातरम्।

सुजलां सुफलां मलय़जशीतलाम्,
शस्यश्यामलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।१।।

शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्,

फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम्,
सुखदां वरदां मातरम् । वन्दे मातरम् ।।२।।
कोटि-कोटि (सप्तकोटि) कण्ठ कल-कल निनाद कराले,
कोटि-कोटि (द्विसप्तकोटि) भुजैर्धृत खरकरवाले,
अबला केनो माँ एतो बॉले (के बॉले माँ तुमि अबले),
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीम्,
रिपुदलवारिणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।३।।
तुमि विद्या तुमि धर्म,
तुमि हृदि तुमि मर्म,
त्वं हि प्राणाः शरीरे,
बाहुते तुमि माँ शक्ति,
हृदय़े तुमि माँ भक्ति,
तोमारेई प्रतिमा गड़ि मन्दिरे-मन्दिरे। वन्दे मातरम् ।।४।।
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,
कमला कमलदलविहारिणी,
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्,
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्,
सुजलां सुफलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।५।।
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्,
धरणीं भरणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।६।।>

हिन्दी-काव्यानुवाद

तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत! हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!
जलवायु अन्न सुमधुर, फल फूल दायिनी माँ! धन धान्य सम्पदा सुख, गौरव प्रदायिनीमाँ!!
शत-शत नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!


अति शुभ्र ज्योत्स्ना से, पुलकित सुयामिनी है। द्रुमदल लतादि कुसुमित,शोभा सुहावनी है।।
यह छवि स्वमन धरें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमिभारत!!
हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!


कसकर कमर खड़े हैं, हम कोटि सुत तिहारे। क्या है मजाल कोई, दुश्मन तुझेनिहारे।।
अरि-दल दमन करें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!!
हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!


तू ही हमारी विद्या, तू ही परम धरम है। तू ही हमारा मन है, तू ही वचन करम है।।
तेरा भजन करें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!!
हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!


तेरा मुकुट हिमालय, उर-माल यमुना-गंगा। तेरे चरण पखारे, उच्छल जलधि तरंगा।।
अर्पित सु-मन करें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमिभारत!!
हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!


बैठा रखी है हमने, तेरी सु-मूर्ति मन में। फैला के हम रहेंगे, तेरा सु-यशभुवन में।।
गुंजित गगन करें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!!
हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!


पूजा या पन्थ कुछ हो, मानव हर-एक नर है। हैं भारतीय हम सब, भारत हमारा घर है।।
ऐसा मनन करें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!!
हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!